छोटा जादूगर, chota jaadugar
-:छोटा जादूगर :- जयशंकर प्रसाद का र्निवल के मैदान में बिजली जगमगा रही थी । हँसी और विनोद का कलनाद गूँज रहा था । मैं खड़ा था उस छोटे फुहारे के पास , जहाँ एक लड़का चुपचाप शरबत पीने वालों को देख रहा था । उसके गले में फटे कुरते के ऊपर से एक मोटी - सी सूत की रस्सी पड़ी थी और जेब में कुछ ताश के पत्ते थे । उसके मुँह पर गंभीर विषाद के साथ धैर्य की रेखा थी । मैं उसकी ओर न जाने क्यों आकर्षित हुआ । मैंने पूछा " क्यों जी , तुमने इसमें क्या देखा ? " " मैंने सब देखा है । यहाँ चूड़ी फेंकते हैं । खिलौनों पर निशाना लगाते हैं । तीर से नंबर छेदते हैं । मुझे तो खिलौनों पर निशाना लगाना अच्छा मालूम हुआ । जादूगर तो बिलकुल निकम्मा है । उससे अच्छा तो ताश का खेल मैं ही दिखा सकता हूँ । " उसने बड़ी प्रगल्भता से कहा । उसकी वाणी में कहीं रुकावट न थी । मैंने पू...