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पुष्प की अभिलाषा class 8 प्रश्नोंत्तर
1. पुष्प की अभिलाषा ( माखनलाल चतुर्वेदी )
1 .चाह नहीं , मैं सुरबाला के , गहनों में गूँथा जाऊँ ।
चाह नहीं , प्रेमी - माला में , बिंध प्यारी को ललचाऊँ ।
उत्तर -
प्रसंग - प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिन्दी की पाठ्य पुस्तक ' भाषा मंजरी ' में संकलित कविता पुष्प की अभिलाषा ' से ली गई है जिसके रचयिता माखनलाल चतुर्वेदी हैं ।
व्याख्या - इन पंक्तियों में कवि ने पुष्प की इच्छा को रेखांकित करने का प्रयास किया है । कवि का कहना है कि पुष्प की इच्छा न तो देवकन्या , युवती , रूपसी के आभूषणों में गूँथे जाने की है और ना ही प्रेमी के हृदयस्थल पर सुशोभित होने वाले वरमाला में गूंथकर प्रेमिका को ललचाने की है ।
2. चाह नहीं , सम्राटों के शव पर , हे हरि ! डाला जाऊँ ।
चाह नहीं , देवों के सिर पर चढूँ , भाग्य पर इठलाऊँ ।।
उत्तर -
व्याख्या - इस अंश में कवि कहना चाहता है कि पुष्प की चाह या इच्छा सम्राट के शव पर श्रद्धांजलि स्वरूप डाले जाने की नहीं है । पुष्प की अभिलाषा देवी - देवताओं के सिर पर चढ़कर गर्व करने की भी नहीं है । तात्पर्य यह है कि पुष्प की चाह महान लोगों , देवी देवताओं को अर्पित होकर गर्व करने की भी नहीं होती ।
3. मुझे तोड़ लेना वनमाली , उस पथ पर देना तुम फेंक ।
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने , जिस पथ जाएँ वीर अनेक ।
उत्तर-
प्रसंग - प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने मातृभूमि की सेवा करने के लिए प्रेरित करने का प्रयास किया है ।
व्याख्या - कवि का आशय है कि पुष्प की महान इच्छा यह होती कि जब वह बगीचे में खिल उठे तो उसे तोड़कर मातृभूमि के उन सपूतों की राह में बिछा दिया जाए जो मातृभूमि के लिए अपना प्राणोत्सर्ग करने हेतु युद्ध के मैदान में जा रहे हों ।
● निम्नांकित प्रश्नों के उत्तर लिखें
1 ' पुष्प की अभिलाषा ' कविता में पुष्प के द्वारा क्या अभिलाषा व्यक्त की गई है ?
उत्तर -
प्रस्तुत कविता में पुष्प की अभिलाषा है कि उसे मातृभूमि के लिए प्राणोत्सर्ग करने वालों के पथ पर ही डाला जाए । उसे अपने अन्य उपयोग की कोई इच्छा नहीं है ।
2 ' मातृभूमि ' से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर -
मातृभूमि का अर्थ है- हमारी माता के समान ऐसी भूमि , जो जन्म से लेकर मृत्यु तक हमारा पालन - पोषण करे । माता के समान होने के कारण मातृभूमि हमें प्राणों से भी प्यारी होती है ।
3 कविता में पुष्प किन - किन चीजों की चाह नहीं करता ?
उत्तर-
इस कविता में पुष्प को न तो रूपसी , अप्सराओं के गहनों में गूँथे जाने की चाह है और न ही प्रेमी की माला बनने की चाह है । पुष्प को महान सम्राटों और महान लोगों के शव पर श्रद्धा सुमन के रूप में अर्पित किए जाने की भी चाह नहीं है और तो और उसे देवी - देवताओं के सर पर चढ़कर अपने भाग्य पर गर्व करने की भी चाह नहीं है ।
4. ' मुझे तोड़ लेना वनमाली ' उस पथ पर देना तुम फेंक । मातृभूमि पर शीश चढ़ाने , जिस पथ जाएँ वीर अनेक । ' • इन पंक्तियों का आशय स्पष्ट करें ।
उत्तर -
प्रस्तुत पँक्तियों का आशय यह है कि पुष्प जिसे प्यार , शृंगार और सम्मान के प्रतीक के रूप में मनुष्य द्वारा उपयोग किया जाता है , वह अपने आप को उन वीर सैनिकों की राहों में बिछा देने की कामना करता है जो मातृभूमि की रक्षा हेतु अपना सर्वस्व बलिदान करने जा रहे हैं । आत्मोत्सर्ग करने जा रहे मातृभूमि के सपूतों के कदमों से कुचले जाने पर उसे संतोष होगा कि उसकी कोमल पंखुड़ियों के कारण वीर सैनिकों की राह कुछ तो आसान होगी ।
5. देवों के सिर पर चढ़कर अपने भाग्य पर इठलाने से पुष्प क्यों बचना चाहता है ?
उत्तर-
देवों के सिर पर चढ़कर अपने भाग्य पर इठलाने से पुष्प इसलिए बचना चाहता है क्योंकि वह गर्व करने के उपरांत होने वाले घमंड रूपी दुर्गुण से बचना चाहता है ।
6 जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी किस प्रकार महान है ?
उत्तर -
जननी अर्थात् माँ जिन्होंने हमें इस संसार में आने का अवसर दिया । माँ ने ही हमें संसार की सुंदरता से अवगत कराया । और स्वर्ग किसने देखा है । कौन जाने स्वर्ग का अस्तित्व है भी या नहीं । जननी के समान जन्मभूमि अर्थात् जहाँ हमने जन्म लिया है , अत्यंत महान है । यह जन्मभूमि ही है जिसने हमारे जीवन की सारी आवश्यकताएँ पूरी की है । हमें अपने गर्भ में समाए बहुमूल्य संसाधनों से परिपूर्ण किया है । आवास और भोजन उपलब्ध कराया है । अतः जननी और जन्मभूमि दोनों ही स्वर्ग से महान हैं ।
Good sir
ReplyDeleteChapter 2 sir
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